न्यूज़ वर्ड: हर्षमणि बहुगुणा, जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।। यद्यदाचरति श्रे...
न्यूज़ वर्ड: हर्षमणि बहुगुणा,
जातस्य हि ध्रुवो
मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे
न त्वं शोचितुमर्हसि।।
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो
जन:।
स यत्प्रमाणं
कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
"सुविख्यात चिपको आन्दोलन के प्रणेता श्री सुन्दर
लाल बहुगुणा जी ने २१ मई २०२१ के अपराह्न तीन बजे के लगभग एम्स ऋषिकेश में अन्तिम स्वांस
ली। अन्तिम समय कोरोना वायरस की लहर
की चपेट में आने से आपके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो सका,
वृद्धावस्था के
कारण शरीर बीमारियों का घर बन ही जाता है कहीं उच्च रक्तचाप,
कहीं शूगर,
गैस अपच आदि न
जाने क्या क्या बीमारियां और फिर यह वैश्विक महामारी कोरोना ने आपका शरीर जर्जर किया
और अन्ततः अपने आगोश में ले लिया।"
"नौ जनवरी सन्
१९२७ को श्री अम्बा दत्त बहुगुणा जी के कनिष्ठ पुत्र के रूप में आपने इस देवभूमि की
माटी को पवित्र किया था। आपके दो अग्रज स्व० श्री मुकुन्द राम बहुगुणा जी जिनके दो
सुपुत्र श्री गिरीश बहुगुणा व श्री दिनेश बहुगुणा तथा दूसरे अग्रज स्व० श्री गोपाल
राम बहुगुणा जी जिनके तीन सुपुत्र श्री विनोद बहुगुणा,
श्री सुबोध बहुगुणा
व श्री प्रमोद बहुगुणा मुख्य रूप से देहरादून में निवास करते हैं। तीन जुलाई सन् १९२४
को अवतरित श्री गोपाल राम बहुगुणा जी सुयोग्य शिक्षा विद रहे व जिला विद्यालय निरीक्षक
के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों
से शिक्षाविभाग का मार्ग दर्शन करते रहे।
श्री बहुगुणा
जी के अनुपम कृत्यों से समूचा क्षेत्र, देश व विश्व परिचित है,
आपकी अपूरणीय
क्षति का दंश सभी निश्चित रूप से सहन करते रहेंगे। ऐसी विभूतियां शायद कभी - कभी इस
धरा धाम में दर्शन देती हैं और मानवों को समुचित पाठ पढा कर दिव्य ज्योति में विलीन
हो जाती है। ब्रह्मलीन आदरणीय बहुगुणा जी के अनेकों अनुयायियों को उनका इस तरह चला
जाना केवल वेदना ही दे गया है। आप किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं न जाने कितने पुरस्कारों
से आपको नवाजा गया, पर मन में पुरस्कार प्राप्त करने की किंचित
लालसा आपको कभी नहीं रही, इस जन का ऐसा सौभाग्य नहीं रहा कि आपका सानिध्य
प्राप्त होता, पर चिपको आन्दोलन के सूत्रधार आपके दर्शन पहली बार सन् १९७८ के लगभग
हुए जब आप बस द्वारा मसूरी से चम्बा आ रहे थे। अपना टेप रिकॉर्डर चला कर मुझे वृक्ष
बचाने की प्ररेणा दे रहे थे। इसका कारण शायद यह भी रहा कि मैंने स्वयं को बहुगुणा बताया
व उन्हें ताऊजी कह कर सम्बोधित किया। तब यह जानकारी नहीं थी कि यह प्राणी विश्व के
किसी मानद व्यक्ति के सम्पर्क में है।
सामान्य मिलन
हुआ पर फिर विशेष मिलना तब हुआ जब आप टिहरी बांध के विरोध में धरना प्रदर्शन में बैठे
थे,
तब एक आलेख लिखा
था जो उत्तराञ्चल साप्ताहिक पत्रिका के साथ सत्यपथ कोटद्वार से प्रकाशित हुआ था। उसमें
लिखा था कि आखिर क्यों कर रहे हैं बड़े बांधों का विरोध श्री बहुगुणा।
चूंकि अपने कर्त्तव्य
को पूरा करने के उद्देश्य से अधिक समय भटकने का नहीं मिलता था, पर एक बार मालिदेवल
में मेरी एक कथा में आपका स्नेहिल आशीर्वाद मिला। उसमें भाई स्व० श्री विद्यासागर नौटियाल
जी भी उपस्थित रहते थे। आपकी सौजन्यता की एक ही प्रेरणा थी कि जन सामान्य को सही दिशा
देने के लिए सतत प्रयास करते रहना।
अधिक कहना समीचीन
नहीं है। एक बार आपके आवास शास्त्री नगर में भी आपके दर्शन किए। मूलरूप से सावली के
निवासी आपके पूर्वज दादाजी स्व० श्री मकरध्वज बहुगुणा जी के चार सुपुत्रों में बड़े
सुपुत्र स्व० श्री बद्री दत्त बहुगुणा जी सावली में ही रहे, जिनके पौत्र स्व० श्री
राम प्रसाद बहुगुणा जी व स्व० श्री प्रेमदत्त बहुगुणा जी के विषयक फरवरी में चर्चा
की थी।
श्री मकरध्वज
बहुगुणा जी के दूसरे सुपुत्र स्व० श्री नागदत्त बहुगुणा जी के दो सुपुत्र हुए बड़े
सुपुत्र स्व० श्री अम्बा दत्त बहुगुणा जी मरोड़ा में बस गये थे तथा दूसरे सुपुत्र स्व०
श्री नारायण दत्त बहुगुणा जी सिराई बस गये थे, आपके चार सुपुत्र श्री दयाराम बहुगुणा जी, श्री जगदीश बहुगुणा
जी,
श्री कृष्णा नन्द
बहुगुणा जी, व श्री माया राम बहुगुणा जी हुए।
“होनहार वीरवान
के होत चीकने पात'' आप सभी उत्कृष्ट
कोटि के व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति हुए। श्री मकरध्वज बहुगुणा जी के तीसरे सुपुत्र
स्व० श्री शिव दत्त बहुगुणा जी के सुपुत्र स्व० श्री केदार दत्त बहुगुणा जी व उनके
सुपुत्र श्री भगवती प्रसाद बहुगुणा जी श्री सत्य प्रसाद बहुगुणा जी व श्री जगदीश बहुगुणा
जी हुए। और चौथे सुपुत्र स्व० श्री कृष्ण दत्त बहुगुणा जी उत्तरकाशी की गोडर पट्टी
के ओड गांव में जो बुघाण गांव के नाम से भी जाना जाता है में बस गये थे। उनके तीन सुपुत्रों
में श्री घमण्डू बहुगुणा जी, श्री बाजा व श्री काल्डू बहुगुणा जी हुए,
उनकी वंश वेल
बहुत अधिक फैली हुई है।
कहा जाता है कि
मनुष्यों में वे लोग धन्य हैं और निश्चित रूप से कृतार्थ हैं जो इस समय ईश्वर का नाम
स्मरण करते हैं व दूसरों से भी करवाते हैं।
ते सभाग्या मनुष्येषु
कृतार्था नृप निश्चितम्।
स्मरन्ति ये स्मारयन्ति
हरेर्नाम कलौ युगे।।
"आपकी सौजन्यता व सहिष्णुता के विषयक जितना
भी कहा जाय कम ही है, आपकी श्रेष्ठता के कारण सभी आपका अनुकरण करते
हैं। भगवान श्री कृष्ण ने भी यही कहा कि मैं कर्म में विश्वास करता हूं और सभी मनुष्यों
को अपने कर्म के प्रति सजग रहना चाहिए।
उत्सीदेयुरिमे
लोका न कुर्या कर्म चेदहम्।
संकरस्य च कर्ता
स्यामुपहन्यामिमा: प्रजा:।।
" इसी भावना के ओत-प्रोत होकर वृक्ष वृद्धि अर्थात
पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जन-जन को आपने जागृत किया,
यह 'भूत'
इस जन पर भी लगा तथा माननीय डॉ० मदन लाल दीवान का सहयोग भी मिला व पर्यावरण
की सुरक्षा हेतु वृक्षारोपण कर अब अपने लिए ही संकट खड़ा कर रखा है। किन्तु सार्वजनिक
हितार्थ कार्य कभी न कभी अपना हित भी करेगा। उर्दू के प्रसिद्ध शायर आतिश ने कहा था
कि-
मंजिलें-हस्ती
में दुश्मन को भी अपना दोस्त कर।
रात हो जाय तो
दिखलावें तुझे दुश्मन चिराग।।
आप अजात शत्रु की तरह अपने मार्ग पर सदैव आगे बढ़ते रहे, आपकी जीवन यात्रा प्रत्येक मानव को जीवन जीने की कला सिखाती है प्रेरणा प्रदान करती है कि किस तरह सादा जीवन जी कर उच्च विचार रखे जा सकते हैं। आपके विषयक कुछ कहना मात्र सूर्य को दीपक दिखाने की तरह है। अतः आपको केवल अपने श्रद्धासुमन ही समर्पित करता हूं तथा आपकी दिवंगत आत्मा की शान्ति की प्रार्थना करता हूं, साथ ही ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि आपके सुपुत्र श्री राजीव बहुगुणा व श्री प्रदीप बहुगुणा, जो आज इस महान दु:ख व वियोग के कारण शोक संतप्त हैं, के परिवार व परिजनों को इस महान वेदना को सहन करने की शक्ति भगवान प्रदान करें।
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