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कविता: अभी समय है, शरण चले आ !

न्यूज़ वर्ड, @ कवि: सोमवारी लाल सकलानी निशांत   तू नियामक -शक्तिमान है, अजर अमर प्रभु अविनाशी। नश्वर प्राणी - दुर्बल जन हूं,सुन जन पुकार हे स...



न्यूज़ वर्ड, @ कवि: सोमवारी लाल सकलानी निशांत
 
तू नियामक -शक्तिमान है, अजर अमर प्रभु अविनाशी।
नश्वर प्राणी - दुर्बल जन हूं,सुन जन पुकार हे सर्व ज्ञानी।
हे ! निर्मम निष्ठुर निष्कामी, हर पीड़ा कष्ट जग परेशानी,
मोहभंग क्यों हो रहा है तुझसे, हे निर्गुण निर्दय निरंकारी।

कह दे, कवि तू मन की बातें,सुनने को तत्पर हूं खड़ा।
मुझको दोष क्या  देवेगा  तू , तू अधम नर खल कामी।
कर ले अधिकार जगत नियंत्रण,हे महामूर्ख ऐ अज्ञानी।
सब जीवों में तुझे श्रेष्ठ बनाकर ,मुझसे हुई यह नादानी !

भोग परोसे मैने तुझको, सुन कृतघ्न  जन अपराधी। 
बावन भोग, छत्तीस व्यंजन, मेरे नाम से आपाधापी।
राजनीति दुश्चक्र चला कर, सोचा  हित तूने अज्ञानी।
धरती अम्बर छला है तूने,अब भीख मांग रहा कामी!

आदिकाल से तुझे समझाया, तू कब बात हमारी मानी।
दौलत शोहरत मद विकार में, तू समझा नहीं अहंकारी।
भोग कष्ट भय आतंक मौत से, नाक रगड़ मत अतिवादी।
अभी समय है शरण चले आ,है अंतिम अवसर नहीं हानि।

तू चमगादड़ के खून का प्यासा, जो खून चूसता सबका,
इससे अच्छा था लक्कड़ खाता या रस चूसता गन्ने  का।
जब चलती है तेरी गड्डी, कहां देखता है धरती माता को,
आफत आई जब जान मुसीबत,तब समझा करतूतों को।

              

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