न्यूज़ वर्ड रिपोर्ट: कवि: सोमवारी लाल सकलानी , निशांत। 34 साल बाद अपने देश में नई शिक्षा नीति का मसौदा बन करके तैयार हुआ और सामने आया।...
न्यूज़ वर्ड रिपोर्ट: कवि: सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
34 साल बाद अपने देश में नई शिक्षा नीति का मसौदा बन करके तैयार हुआ और सामने आया। प्रथम दृष्टा नीति अच्छी लग रही है। यह तो समय ही बताएगा; किस समय की कसौटी पर कितनी खरी उतरती है? केवल नाम बदलने से शिक्षा का पैटर्न नहीं बदल जाता है, इसके क्रियान्वयन के लिए भविष्य में ठोस पहल भी जरूरी है।
नीतियां सोच समझकर, मंथन के बाद अनेक सुझाव और परामर्श के द्वारा बनाई जाती हैं। काफी समय, संसाधन और बौद्धिकता सम्मिलित होती है।
मैकाले की शिक्षा नीति के बाद भारतवर्ष में आजादी के बाद भी अनेक शिक्षा नीतियों पर कार्य हुआ, उनको लागू किया गया और कुछ आमूलचूल परिवर्तन भी हुआ। लेकिन शिक्षा नीति रोजगार मूलक उतनी कारगर साबित नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी। इसके अनेकों कारण रहे हैं। जो के धरातल पर बिल्कुल पारदर्शी हैं।
मैं सदैव सकारात्मक बात करता हूं लेकिन कुछ ऐसे लक्षण जब सामने दिखाई देते हैं तो उन पर लिखना और कहना भी लाजमी है।
वर्तमान में शिक्षा पर काफी जोर दिया जा रहा है, विशेषकर सरकारी शिक्षा पर। लेकिन यदि सम्यक विश्लेषण किया जाए तो आज भी शिक्षा पर निजी क्षेत्र का प्रभाव साफ दिखाई देता है। हम भी इसके लिए काफी दोषी हैं। केवल संसाधनों का व्यय करके विद्वता अर्जित नहीं की जा सकती है। इसके लिए समग्र पहल की जरूरत होती है ।
भारत जैसे बड़े देश में एक ही तरह की शिक्षा प्रणाली लागू करना कठिन अवश्य है लेकिन असंभव नहीं है। जब मैकाले की शिक्षा नीति पूरे देश में लागू हो सकती है तो हमारे देश में आजादी के बाद ही एकल शिक्षा प्रणाली क्यों नहीं लागू की जा सकती है ? शिक्षा की दुर्दशा के लिए दोहरी शिक्षा प्रणाली का खत्म होना बहुत ही जरूरी है।
बच्चों की क्षमता, कौशल, ज्ञान, मनोवृति, रुचि, उत्साह और बुद्धि लब्धि के अनुसार ही उन्हें किशोरावस्था से ही रोजगार के लिए तैयार करना बहुत ही जरूरी है। तीन दशक से भी ज्यादा के शासकीय सेवा और उससे भी पूर्व शिक्षक के रूप में निजी शिक्षण संस्थाओं में कार्य किया। काफी कुछ अनुभव भी प्राप्त किया। समाज, बच्चों, साथियों और विभाग से काफी कुछ सीखा भी। जितना हो सके उसको समुचित रूप से शिक्षा के लिए समर्पित भी किया।
मैं अपने क्षेत्र के यहां पर दो विद्यालयों का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहूंगा कि नीति रीति सब कुछ होने के बाद भी सिस्टम की कमियों के कारण छात्रों को समुचित लाभ नहीं मिल पाता है। थौलधार प्रखंड में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, तिवाड गांव है,जो कि बिल्कुल सड़क से लगा हुआ टिहरी शहर कोटि कॉलोनी के नजदीक, आवागमन की पूर्ण सुविधाएं, पूर्ण शिक्षक और प्रधानाचार्य सहित स्टाफ। लेकिन छात्र संख्या 10 से भी कम। माध्यमिक विद्यालय के रूप में संसाधन युक्त विद्यालय है फिर भी छात्र संख्या इतनी कम क्यों है ?
इसका सीधा कारण है दोहरी शिक्षा प्रणाली का दोष जो कि शहरी क्षेत्रों में भी साफ दिखाई देता है। दूसरी ओर इसी प्रखंड में राजकीय इंटर कॉलेज कांडीखाल, जुवा, टेहरी गढ़वाल है जहां की छात्र संख्या ढाई सौ से अधिक थी लेकिन महत्वपूर्ण विषयों के अध्यापक ना होने के कारण अभिभावकों को मजबूरन अपने बच्चों को दूसरे विद्यालय में ले जाना पड़ा। विगत वर्ष विद्यालय में प्रधानाचार्य सहित 8 पद रिक्त थे और छात्र संख्या 163 थी। किसी तरह से बच्चों को शिक्षण कार्य करवाया जा सका।
इतना ही नहीं हाईस्कूल परीक्षा में जो कुशाग्र बच्चे थे और गणित विषय में अच्छे रुचि रखते थे ,गणित का प्रवक्ता न होने के कारण, वर्षों से अभिभावकों को मजबूरन अपने बच्चों को अन्यत्र ले जाना पड़ा। जिससे छात्र, क्षेत्र और अभिभावकों को ही लाभ नहीं मिला और विद्यालय को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
इसका सीधा असर बच्चों की मेरिट पर भी पड़ा । जिन बच्चों ने 90 से अधिक प्रतिशत मार्क्स लाने थे वह केवल 86 / 87% पर ही रुक गए। साथ ही अनेक बच्चों की प्रथम श्रेणी भी प्रभावित हुई। जब सम्बंधित विषय का अध्यापक नहीं होगा तो इसका असर भी बच्चों के की मेरिट पर पड़ेगा ही ।
यद्यपि शिक्षकों की मेहनत के कारण अधिकांश छात्र छात्राएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई है। कई छात्राएं विशेष योग्यता से भी उत्तीर्ण है ।लेकिन उत्तराखंड की टॉप 20 मेरिट में स्थान नहीं बना पाई।
सरकारी स्कूलों में शिक्षक अनेक कठिन परीक्षाओं को उत्तीर्ण करने के बाद, शिक्षक के रूप में कार्य करते हैं। वह प्रशिक्षित ,सभी प्रकार के शैक्षिक योग्यताओं को पूर्ण करने वाले, अनेक प्रकार के प्रशिक्षण प्राप्त होते हैं । लेकिन सबसे बड़ा कारण यह है कि जो शिक्षक सरकारी विद्यालयों में कार्य कर रहे हैं ,अधिकांश अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ा रहे हैं। जिसके कारण स्वरूप अभिभावकों के मन में भी एक भ्रांति उत्पन्न होती है और विश्वास उठ जाता है।
विश्वास उठने के कारण, छात्र संख्या में गिरावट आती है और समाज भी विद्यालयों के प्रति इतना संवेदनशील नहीं रहता है।
अतः संक्षेप में या कहा जा सकता है कि नीतियां बनती रहेंगी और शिक्षा, गंगा की पवित्र धारा के समान अविरल गति से जब तक सृष्टि रहेगी तब तक चलती रहेगी। जब तक यह संसार है तब तक शिक्षा व्यवस्था भी अविरल है, चाहे वह किसी भी रूप में हो। गुरुकुल के रूप में हो, शिशु मंदिर, विद्या मंदिर, सरकारी स्कूल, अंग्रेजी स्कूल, मदरसे आदि किसी भी रूप में दी जाए।
औपचारिक शिक्षा के अंतर्गत बेसिक शिक्षा प्रणाली सुदृढ़ होनी चाहिए, क्योंकि शिक्षा का आधार है। अगर नीवं ही कमजोर पड़ गई, तो शिक्षा का विशाल भवन कभी इस पर टिक नहीं सकता ।
अतः शिक्षा रोजगार मूलक, नैतिक गुणों से भरपूर ,ज्ञान, कौशल और मनोवृति से युक्त हो, जो स्वस्थ वातावरण में फलती फूलती है । जिसका सीधा लाभ समाज, राष्ट्र और विश्व को मिलता है।
नई शिक्षा नीति का जब पूरा मसौदा सामने आएगा तो उस पर अवश्य अध्ययन किया जाएगा। उसकी समीक्षा की जाएगी और यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह सकारात्मक टिप्पणियां, समालोचना करके शासन के सम्मुख भी लाएगा।
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