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जन्मदिवस पर विशेष: साहित्य जगत के देदीप्यमान नक्षत्र थे मुंशी प्रेमचंद जी

न्यूज़ वर्ड रिपोर्ट: कवि श्री सोमवारी लाल सकलानी , निशांत प्रजातांत्रिक देश भारत में धर्म और राजनीति की बातें सर्वोपरि हैं । यह शास्वत व्यव...

जन्मदिवस पर विशेष: साहित्य जगत के देदीप्यमान नक्षत्र थे मुंशी प्रेमचंद जी


न्यूज़ वर्ड रिपोर्ट: कवि श्री सोमवारी लाल सकलानी, निशांत

प्रजातांत्रिक देश भारत में धर्म और राजनीति की बातें सर्वोपरि हैं । यह शास्वत व्यवस्था आदि काल से चली आ रही है। समाज को एकता के सूत्र में बांधने वाला, समन्वय की भावना स्थापित करने वाला, धार्मिक भावो की प्रचुरता को आगे बढ़ाने वाला, लोकजीवन और लोक समाज की दिशा निर्धारण करने वाला, समाज को समयानुकूल दिशा देने वाला ,साहित्यकार आज हाशिए पर चला गया है। वैज्ञानिक चश्मे का कांच बदलते बदलते बूढ़े होकर मर जाते हैं। कभी एक दो को स्मरण कर दिया जाता है। यही हश्र साहित्यकारों का होता है। अपने प्रयोजन के लिए राजनीति उन्हें याद करती है और फिर भुला देती है।

आज साहित्य जगत के देदीप्यमान नक्षत्र मुंशी प्रेमचंद जी का जन्मदिवस है। यूं तो प्रत्येक व्यक्ति ने श्रुति और अनुश्रुति के द्वारा साहित्य की कहीं न कहीं सेवा की है लेकिन स्थापित साहित्यकार वही होता है जो समाज को दिशा देता है। शोषण के खिलाफ आवाज उठाता है।स्थिति और परिस्थिति देख कर रीझ या खीज जाता है और संकेतों मे मन की बातें उकेर देता है।

सन 1880 में जब लॉर्ड रिपन भारत के वायसराय थे, उसी दौरान मुंशी प्रेमचंद का वाराणसी से 6 मील दूर लमही गांव में 30 जुलाई 1880 को जन्म हुआ। कायस्थ परिवार में आप ने जन्म लिया। बचपन में धनपत राय के नाम से पुकारे जाते थे। अजायब लाल राय पिताजी और आनंदी देवी आपकी मां थी। पंद्रह वर्ष की आयु में आपका विवाह हुआ। आपकी पत्नी शिवरानी एक बाल विधावा थी जिनसे उनकी शादी हुई थी। मैट्रिक तक की शिक्षा आपने निर्धनता के कारण मुश्किल से हासिल की। लगन होने के कारण स्नातक तक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य, पर्शियन और इतिहास विषय में के साथ प्राप्त की। स्कूल अध्यापक के बाद आपके स्कूल डिप्टी इंस्पेक्टर पद पर कार्यरत रहे।

नौकरी के दौरान आपने "सोजे वतन" पुस्तक लिखी; जो कि सरकार ने जफ्त कर दी। इसलिए आपने अपने निक नाम प्रेमचंद के नाम से साहित्य सर्जन शुरू किया। उस दौर में जब बंकिम चंद्र बनर्जी, सरत चंद्र चटर्जी और रूसी लेखक टॉललिस्ताय जैसे महान लेखक की तूती बोलती थी, प्रेमचंद ने अपने को स्थापित किया। 300 कहानियां, दसों उपन्यास ,3 नाटक, अनेकों निबंध आदि लिखकर आप साहित्य सम्राट के रूप में जाने गए।

गुल्ली डंडा, दो बैलों की कथा, ईदगाह, शतरंज के खिलाड़ी, अनुभव, सेठ का कुआं, आदि अनेकों हैं चर्चित कहानियां

यूं तो प्राथमिक शिक्षा से लेकर आज तक भारत के कोने -कोने में असंख्य लोगों ने प्रेमचंद की कहानियां पढ़ी होंगी; क्योंकि उनकी कहानियां प्राथमिक स्तर से ही पाठ्यक्रम में सम्मिलित है। गुल्ली डंडा, दो बैलों की कथा, ईदगाह, शतरंज के खिलाड़ी, अनुभव, सेठ का कुआं, आदि अनेकों चर्चित कहानियां है जो पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं। माध्यमिक और उच्च शिक्षा में उनके उपन्यास गोदान, सेवाग्राम, प्रेमाश्रय आदि को सम्मिलित किया गया है।

मुंशी प्रेमचंद एक कालजई साहित्यकार थे। उन्होंने लोक भाषा का प्रयोग किया जो कि प्रत्येक हृदय को छू गई। उर्दू और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान होने के कारण आपके साहित्य में उर्दू और अंग्रेजी का पुट सर्वत्र दिखाई देता है। साधारण भाषा में आपने अपनी बातें कहीं। आप की अनेकों कहानियां और उपन्यास के अंग्रेजी में अनुवादित हैं। पूस की रात, नमक का दरोगा, अनुभव आदि कहानियां माध्यमिक स्तर के पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित है। इसलिए उनके साहित्य पर चर्चा करना लाजमी है।

प्रेमचंद के दादा जी पटवारी थे और पिताजी डाक मुंशी; लेकिन बड़ा परिवार होने के कारण आर्थिक तंगी में उन्हें विपन्न जीवन जीना पड़ा। बाल्यावस्था में जब आप ₹5 की नौकरी पर नियुक्त हुए तो ₹2 में अपना खर्चा चला कर ₹3 परिवार के भरण-पोषण पर भी करते थे। बनना तो वकील चाहते थे, लेकिन आर्थिकी तंगी के कारण मास्टर ही बन पाए लेकिन साहित्य के क्षितिज पर वह ध्रुव तारे के समान आ चमक रहे हैं। 16वीं शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास जी ने जिस प्रकार रामायण को रामचरितमानस के रूप में परिवर्तित कर लोक भाषा में लोगों के सम्मुख प्रस्तुत किया, उसी प्रकार प्रेमचंद जी ने अनेकों कहानियां ,दंत कथाएं, अनुश्रुतियां सुनकर अपनी साहित्य क्षमता का विकास किया और विशद लोक साहित्य प्रस्तुत किया।

हिंदी साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद जी का योगदान सर्वोपरि तथा अनुकरणीय है। उनकी कहानियों और उपन्यासों का अंग्रेजी अनुवाद भी उतना ही हृदय स्पर्शी है जितना कि उनका मूल साहित्य।

मैं उनके जन्मदिवस पर एक साहित्यकार के रूप में स्मरण करते हुए नमन करता हूं।

* कवि कुटीर, सुमन कालोनी चंबा, टिहरी गढवाल।

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