न्यूज़ वर्ड @ कवि: सोमवारी लाल सकलानी, निशांत कैसा संसार चाहते हो तुम ? क्या पर्वत खल्वाट चाहते हो तुम ? या हरीतिमा से अनुरंजित , कुदरत का क...
कैसा संसार चाहते हो तुम ?
क्या पर्वत खल्वाट चाहते हो तुम ?
या हरीतिमा से अनुरंजित ,
कुदरत का करिश्मा देखना चाहते हो तुम ?
क्या माफियाओं का राज चाहते हो तुम ?
बिके हुए संसार को चाहते हो तुम ?
या प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता से,
नित प्रति पल रू ब रू होना चाहते हो तुम ?
भौतिक वाद का कुरूप चेहरा देख लो !
भू माफियाओं की करतूतों को देख लो !
प्रकृति का दिव्य सौंदर्य भी यहां देख लो !
और कुदरत की स्वर्णिम आभा निहार लो !
सावन के अंधों को तो सदा हरा ही दिखता है।
उन्हीं सावन के अंधों में मैं भी एक हूं !
उल्लू तक भी रात को देख लेते हैं ,
लेकिन धन पिपासु दिवस के प्रकाश में भी अंधे हैं !
शासन - प्रशासन तो कोरोना मे लीन हैं !
पर पत्रकार पर्यावरणविद भी नींद में हैं !
जन प्रतिनिधि बाईस चौबीस के चक्कर ,
और लोग धृतराष्ट्र भी बिदुर बन खड़े हैं।
दुशासन द्रौपदी का चीर हरण कर रहा है।
कलयुग में धरती माता का सीना चीर रहा है।
माफिया के आगे सब सिर झुका कर बैठे हैं,
और प्रकृति द्रौपदी बनी किस्मत पर रो रही है !
कृष्ण जरूर आएगा , लाज बचाने !
द्रौपदी रूपी प्रकृति का विश्वास है।
बरना धरती का तंत्र बिगाड़ने वालों ,
कृष्ण का सुदर्शन चक्र बरकरार है ।
*कवि कुटीर, सुमन कॉलोनी चंबा,टिहरी गढ़वाल।
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