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हमे कोरोना नहीं - हम कोरोना भी पचा जाते हैं

              @कवि: सोमवारी लाल सकलानी,निशांत  वाह ! भाई कोरोना। तू आ गया ! हमे कोरोना नहीं - हम कोरोना भी पचा जाते हैं हम सदा ही जमीन पर भा...


           

 @कवि: सोमवारी लाल सकलानी,निशांत

 वाह ! भाई कोरोना। तू आ गया !

हमे कोरोना नहीं - हम कोरोना भी पचा जाते हैं

हम सदा ही जमीन पर भार रहे।

जिंदा लाश का भार ढोते रहे।

जीवन जीने  के लिए खाते रहे, 

कभी खाने के लिए नहीं जिएं।

हम मेहनतकश ,असंख्य उल्कापिंड,

टूटते तारों के समान ब्रह्मांड में आए,

भावनाओं के द्वंद में,उलझे रह गए।

तिकड़म,तरकीब और तर्क से वंचित,

सत्ता शोहरत शान के गलियारे  न पंहुचे।

बस  ! चींटियों की तरह काम पर लगे रहे,

कभी टिड्डे ,टिटहरी नहीं बन सके।

हम चूहों की तरह खोदते रह गए,

बनाई हुई बिलों में भुजंग निवास किए।

हमारे बनाए महलों में हमें आने की मनाही है,

हमारे खून पसीने की खेली होली है।

हम राजशाही से गणशाही का दौर देखे हैं,

नारे,भीड़,प्रदर्शन,वोट के लिए जीवन है !

हमारी प्रतिरोधक क्षमता से जलन न करना,

हमे कोरोना नहीं - हम कोरोना भी पचा जाते हैं।

वाह! भाई कोरोणा ,तू आ गया !

संसार के सारे भेद  मिटा गया !

समतामूलक समाज का पाठ पढ़ाने के लिए,

तू शक्तिसंपन्न मानव को पल भर में समझा गया !

ऐ प्रपंचधारी मानव ! अब भी समय है।

संभल जा ! कुदरत के कहर से डर।

दीवारें न बना ! चंद दिनों के लिए भगवान न बन !

कुदरत के कहर, ईश्वर और कोरोना से डर !

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