प्रस्तुति: हर्षमणि बहुगुणा अहं हरि:सर्वमिदं जनार्दनो , नान्यत्तत: कारण कार्यजातम् । इदृंमनो यस्य न तस्यभूयो , भवोद्भवा द्वन्द्वगहाभवन्ति...
प्रस्तुति: हर्षमणि बहुगुणा
अहं हरि:सर्वमिदं जनार्दनो, नान्यत्तत: कारण कार्यजातम् ।
इदृंमनो यस्य न तस्यभूयो , भवोद्भवा द्वन्द्वगहाभवन्ति ।।
सुरकूट निवासिनी मां श्रीकण्ठा की तलहटी में उनियाल वंशजों का गांव, - सकलाना की राजनीति का
केन्द्र बिन्दु रहा है। सौंग नदी का उद्गम स्थल, चारौं तरफ से पानी के जलस्रोतों
का अपार भण्डार, कृषि व बागवानी का केन्द्र, जहां से विभिन्न विधाओं को जन्म देने वाले मनीषी विद्वानों
ने केवल साहित्य के क्षेत्र में ही नहीं अपितु राजनीति, धर्मनीति, ज्योतिष, आयुर्वेद, कर्मकाण्ड, शिक्षण के अतिरिक्त
स्वतंत्रता की अलख जगाने हेतु स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। शिक्षा
का गढ़ विभिन्न प्रान्तीय एवं राष्ट्रीय सेवाओं में सराहनीय भूमिका का निर्वहन
किया (I a s , p c s ,i f s आदि) सकलाना ही नहीं अपितु पूरा जौनपुर विकासखंड, टिहरी जनपद के साथ अब का
उत्तरकाशी जनपद तक में भी अपनी महिमा का मण्डन करने वाले व्यक्तियों से भरा है।
कहने को पिछड़ा क्षेत्र किन्तु देखने से टिहरी जनपद का सबसे अग्रणी क्षेत्र है।
सहिष्णुता, समदर्शिता की प्रतिमूर्तियों का निवास स्थल उनियाल गांव। और जिसकी शिक्षा का
प्रारम्भ यदि इस गांव से हुआ हो तो वह उसे कैसे भूल सकता है? जीवन में उतार चढाव तो
आते ही हैं, परन्तु यदि यह कहा जाय कि जीवन की धारा ही परिवर्तित हो गयी तो? अब सोचता हूं कि शायद कुछ बन जाता पर नहीं बन सका, कोरा का कोरा ही रह गया।
लोभ व लालच चाहे वह सम्मान का ही क्यों न हो? उन वयोवृद्धों को याद कर आज अपने
जीवन की हताशा को महसूस कर रहा हूं। बीस वर्ष के अबोध को पचहत्तर या उससे अधिक उम्र
के सम्मानित मनीषी व्यक्तित्व यदि आदर दें तो स्वाभाविक ही था कि जीवन में इससे
अधिक शायद कुछ भी नहीं है। आज ऐसे ही मनीषी महामानव, पुरुषार्थी, त्यागी, सन्त (मेरी दृष्टि में
सन्त से कम नहीं) प्रात:स्मरणीय श्री शिवशरण उनियाल जी जिन्होंने श्री महेश्वरानंद
उनियाल जी के घर को पांच जून सन् १९०० में पवित्र किया था, को याद कर अपना इतिवृत नहीं भुला
पा रहा हूं। आप श्री पूर्णानंद उनियाल व श्री मनमोहन उनियाल जी से बड़े भाई थे।
कर्मकाण्ड, ज्योतिष, आयुर्वेद के धनी व्यक्ति ने दो सुपुत्रों को श्री कुन्दन लाल उनियाल व श्री
वाचस्पति उनियाल जी को जन्म देकर अपनी सहधर्मिणी को खो दिया था। दुर्दैव के क्रूर
हाथों से भाई मनमोहन को जो राजशाही के समय टिहरी तहसील में नाजर थे असमय छीन लिया
व उनका एक मात्र सुयोग्य सुपुत्र श्री हरि नन्द भी १८ वर्ष की अल्पायु में अकाल
कवलित हो गया, विधि का विधान। दूसरे भाई श्री पूर्णानंद जी के पांच पुत्रों में से दूसरे
सुपुत्र श्री गोविन्द प्रसाद उनियाल जिनका जन्म सन् उन्नीस सौ ४० में हुआ।
वह अचानक १९७८ में अपने अबोध बालक अशोक राज व तीन पुत्रियों का दायित्व अपनी सहधर्मिणी को सौंप कर उनियाल गांव की माटी से विदा हो गए, उनका पुत्र आज ईश्वर कृपा से स्वास्थ्य विभाग में प्रशासनिक अधिकारी के पद पर कार्य करते हुए समाज की भरपूर सेवा में समर्पित है। उनके बड़े सुपुत्र श्री सुन्दर लाल उनियाल जी भी अब हमारे मध्य नहीं हैं उनके चारों पुत्र अपने अपने कार्य में रत समाज व देश की सेवा में समर्पित है। तीन पुत्र रोशन, वंशी व शक्ति अपने घर गृहस्थ आश्रम के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।
"ऐसे महामानव श्री शिवशरण उनियाल जी की अन्तिम तिथि भी पर्यावरण दिवस ५ जून सन् १९८६ को मिली शायद आप पर्यावरण के रक्षक रहे।"
यात्रामात्र प्रसिद्ध्यर्थे स्वै कर्मभिरगर्हितै:।
अक्लेशेन शरीरस्य कुर्वीत धन संचयम्।।
" आपके मार्गदर्शन ने मेरी दशा व दिशा ही बदली, शायद यदि मेरे पण्डित चाचा श्री नरदेव बहुगुणा जी अकाल कवलित न होते तो पौरोहित्य कर्म की लालसा व उसकी सुरक्षा का प्रश्न ही नहीं आता, परन्तु १९७४ में जब थोड़ा सा अध्ययन किया तब चाचा श्री हमें छोड़कर चले गए और उस गुरुत्तर दायित्व को हमें सौंपा जो हमारी हिम्मत से भारी था और मैं जैसा मूर्ख इस बोझ के तले दब गया। उनियाल गांव के सम्मानित मनीषियों बुजुर्गों ने पण्डित जी, पण्डित जी कह कर अन्य विधाओं से मेरा ध्यान ही हटा दिया। क्या जीवन की कामना थी? और क्या विधाता की लीला ? आज उन दिवंगत विभूतियों को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित करता हूं तथा ईर्ष्याद्वेष से भी अपने को ग्रस्त समझता हूं कि आप ने इस कृत्य के प्रति लगाव लगाया यह भी जानता हूं कि विश्वरूप ने क्या कहा था, कि -
विगर्हितं धर्मशीलैर्व्रह्मवर्च उपव्ययम्।
यदि हमारे भाग्य में लिखा है कि-
अकिंचनानां हि धनं शिलोच्छनं, तेनेह निर्वर्तित साधु सत्क्रिय:।
कथं विगर्ह्यं नु करोम्यधीश्वरा:, पौरोधसं हृष्यति येन दुर्मति:।।
आपके तीनों पौत्र श्री पुष्पराज उनियाल, श्री विनोद उनियाल व श्री सतीश उनियाल राजकीय सेवा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
आज उनियाल गांव के उन सभी प्रात: स्मरणीय पूज्य जनों की हृदय की गहराइयों से
श्रद्धासुमन समर्पित करते हुए गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं जिन्होंने अपना सानिध्य
देकर इस जन को अपना स्नेह, प्यार, सौहार्द व आशीर्वाद
प्रदान कर श्रद्धांजली अर्पित करने योग्य बनाया। पुनः कोटि-कोटि नमन व भावभीनी
श्रद्धांजलि समर्पित।।
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