नकोट , टिहरी गढ़वाल। इक्कीसवीं सदी के इस कोरोना काल में आमजन को जहां स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है वहीं प्रकृति की बेरुखी की...
नकोट, टिहरी गढ़वाल। इक्कीसवीं सदी के इस कोरोना काल में आमजन को जहां स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है वहीं प्रकृति की बेरुखी की मार झेलने को भी विवश होना पड़ रहा है। सर्दी के इस मौसम में जहां कंपकंपाती ठंड का सामना करना था, वहां फायर सीजन न होने के बाबजूद भी जंगल धधकती आग की आगोश में हैं। दूसरी तरफ जहां इस बक्त किसानों के खेतों में रबि की फसलों ने लहलहाता हुआ दिखाई देना था वहीं बारीस न होने के फलस्वरूप किसानों के खेत बंजर पड़े हुए हैं।
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गए धधकती आग के चित्र गत 08 दिसम्बर की रात्रि करीबन 07 बजे सांय के हैं। यह धधकता जंगल जाखणीधार के पिपालोगांव के
नीचे तथा भागीरथी नदी के ऊपरी साईड का है। जहां कई स्थानों पर जंगल धू-धू कर जल
रहा हैं। ये चित्र ग्रामीण कस्बा से लिए गए हैं। इस मौसम जहां बरफानी हवायें चलनी
थी, वहां जंगल आग से
तबाह हो रहे हैं। यूं तो इस सीजन बारीस न होने के फलस्वरूप खेतांे में फसल नहीं है
और पालतू मवेशियों के लिए चारा भी नहीं है। क्योंकि घास उग ही नहीं पायी। थोड़ा
बहुत नमी के कारण जो उग पायी थी,
वह भी बर्षा न होने
से सूखकर नष्ट हो गयी है। जंगलों के धधकने का यह भी एक मुख्य कारण है।
मौसम की बेरुखी के
चलते मखलोगी प्रखण्ड के किसानों को जहां अपनी पैतृक खेती से महरूम होना पड़ रहा है, वहीं भविष्य में पशुचारे की चिन्ता भी किसानों को अभी से
सताने लगी है। शासन-प्रशासन को चाहिए कि मखलोगी प्रखण्ड के किसानों के खेतों का
स्थलीय निरीक्षण कर पूरे क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित किया जाय और कास्तकारों को
उचित मुआवजा दिया जाकर पालतू मवेशियों के लिए पशु चारे की व्यवस्था सुनिश्चित
करवायी जाय।
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