रिपोर्ट: हर्षमणि बहुगुणा, रानीचौरी: जल है तो जीवन है। आज प्राय: प्राकृतिक जल स्रोत सूखते जा रहे हैं , नदियों में पानी की मात्रा कम होती ज...
रिपोर्ट: हर्षमणि बहुगुणा,
रानीचौरी: जल है तो जीवन है। आज प्राय: प्राकृतिक जल स्रोत
सूखते जा रहे हैं, नदियों में पानी
की मात्रा कम होती जा रही है। पानी के बिना वनाग्नि को रोक पाना कठिन प्रतीत हो
रहा है। बांज या चौंड़ी पत्ती के पेड़ कम होते जा रहे हैं। इन सबका कारण पेयजल
स्त्रोतों की उपेक्षा है। आज घर-घर में पानी की आपूर्ति होने के कारण जल स्त्रोतों
की देख-रेख नहीं हो पा रही है, यदि यही स्थिति
रही तो कुछ समय बाद जल का अभाव हो सकता है। अतः समय रहते ध्यान देना आवश्यक है।
टिहरी राज्य की स्थापना के बाद अर्थात् सन् १८१५ से टिहरी
से ऋषिकेश जाने का रास्ता (राजमार्ग या आम रास्ता) टिहरी, डिबनू, भोना बागी, बादशाही थौल, रानीचौरी, गुरियाली,
स्वीर, आमपाटा, जाजल, फकोट, ओडाउतरी से
ऋषिकेश पहुंचता था। महाराज सुदर्शन शाह से लेकर नरेंद्र शाह तक ने रानी चौरी के
निकट फक्वा पानी को उत्कृष्ट कोटि का जल का दर्जा दे रखा था व राज दरवार में पेयजल
के रूप में इस पानी को मंगवाया जाता था। इस जल में स्वादिष्टता ही नहीं अपितु भोजन
पाचनशक्ति अपूर्व मात्रा में मिश्रित है। अन्य गुणों का भण्डार भी होगा जिसे
वैज्ञानिक ही स्पष्ट कर सकते हैं या जानते हैं।
मीरा बहिन ने पेयजल के लिए चयन किया फक्वा का पानी
प्रसिद्ध सर्वोदई नेत्री मीरा बहिन ने जब अपना आशियाना
पक्षी कुंज (ठांक) बनाया तो पेयजल के लिए फक्वा के पानी का चयन किया, एक बार पानी की
आपूर्ति करने वाले व्यक्ति ने विचार किया कि बहिन जी को क्या पता कि यह जल कहां का
है। अतः दूसरे श्रोत के जल को ले गया। पीते ही बहिन जी ने कहा भैया यह पानी फक्वा
का नहीं है। यह थी पानी की विशेषता।
बिगड़ती जा रही है दशा व दिशा फक्वा पाणी की
आज उस श्रोत की दशा व दिशा बिगड़ती जा रही है। कारण उपेक्षा
के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हो सकता है। इस सन्दर्भ में इस व्यक्ति ने माननीया
सांसद को पांच या छह बार अनुरोध किया पर हालात यथावत। पेयजल स्त्रोतों की देखरेख
सुरक्षा समाज हित में है परन्तु इन स्त्रोतों पर जो कुकृत्य होते हैं वह अवर्णनीय
है एक बार स्रोत के पास किसी असामाजिक तत्व द्वारा तांत्रिक क्रिया की गई उसको
रोकने के उपाय न कर वन विभाग में कार्यरत श्रीमती सरिता बहुगुणा का एक माह का वेतन
ही काट दिया।
श्रीमती सरिता बहुगुणा ने अवगत करवाया कि उसकी किसी व्यक्ति
ने शिकायत की। यह असामाजिक तत्वों की एक बानगी भर है और वे समाज के चहेते बन जाते
हैं। अभिप्राय केवल यह है कि हर साख पे उल्लू तो नहीं बैठा है जिससे हमारी पहिचान
की क्षमता समाप्त हो रही है। रोपित पीपल के वृक्ष को उखाड़ फेंकने का कृत्य, स्रोत के निकट मल
विसर्जन करना। बकरी, मुर्गा काटना
हमारी दूषित मानसिकता का ही परिचायक है। हर वर्ष गंगा दशहरा पर फक्वा पानी में सफाई
अभियान के साथ वृक्षारोपण करते हैं विशेष रूप से पीपल, वट व नीम के पेड़
को लगाने का प्रयास किया जाता है जिसमें गोपाल, विनोद का सहयोग
मिलता है।
विनोद बहुगुणा व श्री गोपाल बहुगुणा के सहयोग से चलाया सफाई
अभियान
इस वर्ष १५ अगस्त को श्री विनोद बहुगुणा व श्री गोपाल
बहुगुणा के सहयोग से सफाई अभियान चलाया था उसका सार्थक परिणाम भी रहा परन्तु फिर
भी जागरूक नागरिकों से विनम्र निवेदन है कि जल स्रोत कहीं का भी क्यों न हो उसकी
सुरक्षा हेतु प्रयास हमें ही करना है। जिससे पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित की जा
सके व सभी नागरिक सभ्य होने का परिचय भी अवश्य देकर देवभूमि उत्तराखंड के स्तर को ऊंचा
उठाने में अपना सहयोग व महत्वपूर्ण योगदान
भी प्रदान करने की कृपा करेंगे। फक्वा की दुर्दशा की कुछ बानगी! अवश्य देखिए।
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