लोभ, क्रोध, घमण्ड और चतुराई से दूर ही रहना श्रेयस्कर है। 🖋️ केदारसिंह चौहान ‘प्रवर’ ✍ गर्मी की भीषण तपिश के दर्मियान बालपन के कुछ संस...
लोभ, क्रोध, घमण्ड और चतुराई से दूर ही रहना श्रेयस्कर है।
🖋️केदारसिंह चौहान ‘प्रवर’
गर्मी की भीषण तपिश के दर्मियान बालपन के कुछ संस्मरण याद आ गए।
जब हम छोटे थे तो अधिकांशतया रात्रि के समय बाहर ही सोना होता था, क्योंकि
उस समय न तो बिजली थी और न ही पंखे, कूलर, एसी
आदि। प्राकृतिक कूलर के सहारे ही लोग अपने घर आंगन में शयन किया करते थे। मच्छरों
से बचने के लिए उस मच्छरदानियां हुआ करती थीं। घर की छतें भी स्लेटों की होती थीं, लिहाजा
बाहर आंगन में ही चारपाई अथवा खाट बिछाकर अथवा जमीन पर ही सोना पड़ता था। खाट व
चारपाई सभी घरों में नहीं मिल पाती थी। खाट व चारपाई भी सेलू (भीमल के रेशे) व
मूंज की रस्सियों से बुनी हुई होती थी। घरों व चारपाइयों पर खटमलों, उपाणों
(पिस्सुओं) का खूब साम्राज्य हुआ करता था। खटमलों को केतली में तेज गर्म पानी करके
मारने का प्रयास किया जाता था, फिर
भी खटमलों से छुटकारा नहीं मिल पाता था। मनोरंजन के साधन टी0वी0 आदि
नहीं थे, लोग कथा व कहानियों से अपना मनोरंजन किया
करते थे। छोटे बच्चे जब सोते नहीं थे, तो
उन्हें कथाएं सुनाकर सुलाया जाता था।
प्रातःस्मरणीय मेरे स्व0 परम्
पूज्य पिताश्री ठा0 श्यामचन्द सिंह चौहान जी
राजस्व विभाग में सेवारत थे, जब
कभी वे छुट्टी में घर आते थे, तो
हमें रात्रि के समय शिक्षाप्रद कथाएं, राजा
भोज की कथाऐं, कहानियां आदि सुनाकर हमारा मनोरंजन किया
करते थे। प्रसंगवश मुझे यहां पर एक कथा याद आ गई, जो
संक्षेप में इस प्रकार हैः-
“एक समय की बात है। तीन युवा विद्वान शिक्षा ग्रहण कर अपने घर
लौट रहे थे। उस समय यातायात के साधन केवल पैदल मार्ग थे। पैदल चलते-चलते उन्हें
भारी प्यास लग गई। वे पानी की तलाश में इधर-उधर भटकते हुए एक तालाब के पास पहुंच
गए। तालाब के नजदीक आते ही उन्होंने देखा कि वहां पर एक साथ तीन लाशें पड़ी हुई
हैं। जिनमें से एक मनुष्य (साथ में बन्दूक), एक
विशालकाय हाथी, एक लोमड़ी (सियार) तथा एक सांप। इन लाशों
को देखते ही तीनों विद्वान अपनी प्यास भूलकर संशय में पड़ गए और गहन विचार करने लग
गए; कि एक साथ इनकी मौतें कैसे हो गईं।
एक विद्वान ने कहा कि मनुष्य ने इनको बन्दूक से मारा, तो
दूसरे ने कहा कि तो यह मनुष्य स्वंय कैसे मर गया। इस तरह कई प्रकार के विचार उनके
मन में आये। तीसरा विद्वान गंभीरता से सोचता रहा। काफी देर तक उनकी आपसी जिरह होती
रही। अंत में तीसरे विद्वान ने अपने साथी दोनों विद्वानों से कहा कि इन सबकी
मृत्यु का कारण मैं आप लोगों को बताता हूं कि यह कैसे यम को भा गए। विद्वान ने कहा
:-
हस्त मरे कछु गर्व करे, सर्प
मरे सुराही। मनुष्य मरे कुछ लोभ करे अरु जम्बु मरे चतुराई।।
युवा विद्वान ने अपने साथी विद्वानों को समझाया कि यह विशालकाय
हाथी जो मृत्युलोक को पहुंच गया है, इसकी
मृत्यु का कारण धमण्ड है। दूसरे विद्वान ने पूछा: वह
कैसे? विद्वान युवक ने जबाब दिया किः-
यहां पर पानी का तालाब है और इस तालाब में अपनी प्यास बुझाने के
लिए हाथी, सांप और सियार तीनों अपनी प्यास बुझाने
आते थे। संयोगवश आज ये तीनों एक साथ यहां पहुंच गए। सांप ने कहा कि यहां तो मैं
पानी पीता हूं, यह हाथी यहां कैसे आ गया और हाथी ने कहा
कि यह तो मेरे पानी पीने का तालाब है। यह सांप यहां पानी पीकर मेरा पानी विषैला कर
देगा। दोनों में बहस हुई और हाथी ने अपने घमण्ड से कि यह तुच्छ सांप मेरे सामने
क्या है, उसे मारने हेतु अपना पैर उसके ऊपर रख दिया, सांप
को भी गुस्सा करते हुए हाथी के पांव पर डंक मार दिया। हाथी के पैर रखने से सांप की
मृत्यु हो गई और सांप के विष से विशालकाय हाथी भी ढेर हो गया।
दो जीवों की मृत्यु तो घमण्ड और गुस्सा (क्रोध) के कारण हो गई और
अब देखिये आगे। मनुष्य और सियार कैसे स्वर्गलोक सिधार गए। इस बीच जंगल में शिकार
खेलने गया शिकारी भी पानी की तलाश में तालाब के पास जाता है और वहां पर सांप व
हाथी को मरा हुआ देखता है। मनुष्य मृत हाथी को देखकर मन में विचार करता है कि जंगल
में शिकार तो नहीं मिला मगर यहां पर मृत पड़े हाथी का दांत ही उखाड़ लूं। काम आयेगा।
इसीलिए कहा भी गया हैः- लोभ पापस्य कारणम्।
इसी लोभ के वश मनुष्य तालाब के पास से एक पत्थर उठाता है और मृत
हाथी के दांत पर पूरी ताकत के साथ पत्थर फेंक देता है कि दांत टूट जाएगा और मैं
इसे अपने साथ ले जाऊंगा। मगर हुआ इसके विपरीत। हाथी दांत से पत्थर टकराकर मनुष्य
के सिर पर तेजी से लगता है और पत्थर के सिर पर लगने से मनुष्य यमलोक सिधार जाता
है। समयानुकूल सकारण तीन मौतें हो जाती हैं।
अब बारी आती है सियार (चालाक लोमड़ी) की। लोमड़ी भी अपने समय से
पानी पीने के लिए तालाब के पास आती है और वहां पर हाथी, सांप
और मनुष्य की तीन लाशों को देखकर खुश हो जाती है कि आज कहीं भटकने की आवश्यकता
नहीं। कई दिनों का भोजन (शिकार) तालाब के पास ही मिल गया। खाना-पीना सब यहीं पर।
मगर वह भी सोचने लगती है कि ये तीनों एक साथ यहीं पर कैसे मर गए। कहीं इसमें कोई
गड़बड़ तो नहीं। सोचते ही उसकी निगाह बन्दूक पर पड़ जाती है और वह समझती है कि इन
सबकी मौत का कारण यही लौह लकड़ी का हथियार है। बन्दूक कारतूस से भरी हुई थी। लोमड़ी
अपनी चालाकी के लिए मशहूर है। उसने सबसे पहले अपने रास्ते से बन्दूक हो हटाने की
सोची और भरी हुई बन्दूक की नाल खींचकर उसे हटाने लगी। इस बीच बन्दूक घोड़ा झाड़ी में
खिंचकर ट्रिगर दब गया और लोमड़ी वहीं पर ढेर हो गयी।“
विद्वान की यह बात उनके साथी युवा विद्वानों का भा गई और वे अपने गन्तव्य हो प्रस्थान कर गए। यहीं पर कथा का विसर्जन हो जाता है। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है किः- लोभ, क्रोध, घमण्ड और चतुराई से दूर ही रहना श्रेयस्कर है।
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