न्यूज वर्ड @कवि : सोमवारीलाल सकलानी, निशांत, गंगावतरण और जल के छीटें - गंगा मैय्या जब धरती पर अवतरित हुई होगी तो शिव की अलकों से पानी की ...
न्यूज वर्ड @कवि : सोमवारीलाल सकलानी, निशांत,
गंगावतरण और जल के छीटें - गंगा मैय्या जब धरती पर अवतरित हुई होगी तो शिव की अलकों से पानी की धारा गोमुख से घाटियों को पार करती हुई मायापुरी हॉट (हरिद्वार ) पहुंच गई और उसके बाद संयुक्त प्रांत के वक्षस्थल को सिंचित करती हुई गंगासागर में विलीन हो गई। शिव की जटाओं से गंगा मां के पानी के छीटें अनेक क्षेत्रों, पर्वतों की चोटियों तक गिरे जहां तक गंगा माता नहीं पहुंच सकती थी अपने पुत्रों की प्यास बुझाने हेतु, उद्धार करने के लिए, उनकेसूखे हलकों को तृप्त करने के लिए, गंगा मां के यह सूक्ष्म छींटे, जगह जगह विशाल नदियों और गाड़ो के रूप में प्रकट हुए।
इसी अनुक्रम में शिव की अलकों से एक छोटा छींटा मेरे दिव्य पर्वत सुरकूट ( सुरकंडा) मे गिरा, जहां आज भी मां सुरकंडा की कुंडी बनी हुई है। उसी स्रोत से विशाल सॉन्ग और हैवल , अगलाड, स्यांसू गाड आदि नदियों का उद्गम स्रोत बना जो कि विस्तृत भू-भाग को सिंचित करने के साथ-साथ जल आपूर्ति करती आई हैं।
मां की कुंडी - बचपन से ही गंगा दसहरा पर्व का साक्षी रहा हूं। मैं गंगा दशहरा पर्व की बात मां सुरकंडा देवी के मेले के रूप में कर रहा हूंं, जो कि मैंने जीवन पर्यंत देखा । न मैंने कहीं किसी पवित्र घाट का नदी में इस अवसर पर स्नान किया बल्कि मां सुरकंडा की कुंडी का दो बूंद जल अवश्य पिया और अपने शरीर को पर भी छींटा माता तथा एक शीशी में भरकर के अपने घर में लाया जो पूजा स्थल में विशेष अनुष्ठान और पर्व के अवसर पर काम आता है। यह जल वर्षों तक दूषित नहीं होता है।
श्री खंड - माता सुरकंडा का मंदिर जैसा कि मैंने अपनी अनेकों पुस्तकों/ रचनाओं में वर्णित किया है ( दिव्य श्रीखंड , सुरकूट निवासिनी ,मां सुरकंडा )आदि में भी जिक्र किया, यह शक्तिपीठ दक्ष प्रजापति के यज्ञ भंग होने के बाद, मां सती के अस्थि पंजर लेकर जब भगवान शिव कैलाश की ओर जा रहे, सिर भाग यहां पर गिरने से श्रीखंड /सर खंड यहां सुरकूट पर्वत (सुरकंडा पर्वत) पर गिरा और यह सिद्ध पीठ गया।
टेहरी जिले का सर्वोच्च शिखर - पर्वत की चोटी पर देवालय बन जाने के बाद ,दस हजार फीट की ऊंचाई पर अवस्थित मंदिर के पास प्राकृतिक जल स्रोत है और इसका एक बहुत बड़ा महत्व इस मंदिर में है। जून माह की दशहरा तिथि के अवसर पर हमेशा गंगा दशहरा का पर्व होता रहा है। हम इस पर्व को बचपन से ही एक मेले (थौलू) के रूप में जानते हैं ।
मंडप से मंदिर - साठ के दशक तक जब यह मंदिर एक छोटा सा मंडप था। स्वामी शिवानंद जी के प्रयासों से मंदिर बना और आज भव्य मंदिर के रूप में विश्व मानचित्र पर अंकित है । आदिकाल मे यह केवल तीर्थाटन का स्थल था। हां यदा-कदा मसूरी ,देहरादून से लोग श्रद्धा पूर्वक इस मंदिर में आते थे । मसूरी से कुछ अंग्रेज लोग भी पर्यटक के रूप में आवाजाही करते रहे।
जैसा देखा - मां सुरकंडा का मेला केवल एक रात और आधा दिन तक लगता था। गंगा दशहरा के पूर्व संध्या पर दूरदराज से लोग सुरकंडा आते थे। रात्रि विश्राम सरकंडा के तप्पड़ पर करके या कद्दूखाल स्थान पर रहकर या नाते रिश्तेदारों के यहां रहकर , दूसरे दिन अपने घर चले जाते थे ।इस मेले का मुख्य आकर्षण जैसे कि पर्वतीय क्षेत्रों के मेलों में होता है चाय ,पकौड़ी , जलेबी, कलाकंद, बर्फी तथा स्थानीय फलों, खेल खिलौने, जरूरत की चीजें और महिला प्रसाधन से था।
कालांतर में मेले का स्वरूप बदलता रहा 1988 - 89 में आईएस इफ्तेफखरुद्दीन ने इस मेले को आकर्षक बनाया था। अनेक कार्यक्रम मेले में आयोजित किए गए जो कि मेरी याददाश्त में बने रहेंगे । इससे पूर्व भी एसएसबी या बीड़ी के प्रचारक आदि लोग कई प्रकार के कार्यक्रम इस मेले में दिखाते रहे हैं। एक बार जादूगर मनोहर कुंडू का जादू भी दिखा जो कि मेरे आकर्षक का केंद्र रहा।
स्थानीय महत्व - (क) इस मेले की विशेषता यह थी कि महिलाएं और बच्चे इस मेले में खूब शिरकत करते थे और अपनी जरूरत की चीजों को मेले के अवसर पर खरीदते थे ।कई दिन पूर्व से स्कूली बच्चों और घर में परिवार में मेले की चर्चा होती थी और सुंदर वस्त्र पहनकर लोग सजधज कर मेले में जाते थे। एक दूसरे से मिलते थे और यह एक उल्लास का प्रतीक था।
(ख) उस समय पैसे का अभाव था पिताजी चवन्नी, अठन्नी देते थे। उसी में सारी चीजों को खरीदना होता था। हां, पिताजी ठेकी में भरकर के जलेबी अवश्य कर ले आते थे और पूरा परिवार शाम को जलेबी खाता था जो कि दादी के द्वारा बांटी जाती थी ।
कोरोना के कारण मेला आयोजित नही - विगत वर्ष से कोरोना महामारी के कारण मेला स्थगित है। कुछ ही लोग गंगा दशहरा के अवसर पर मां के दर्शनार्थ जा रहे हैं ।वह भी अनन्य श्रद्धा वाले लोग ही दर्शनार्थ आ रहें हैं। पर्यटक या दूरदराज के तीर्थयात्री पिछले साल से वहां इस अवसर पर नहीं पहुंच रहे हैं। यह मेला मेरी जीवन के खुशियों से भरा हुआ मेला है ।आधा शताब्दी का अनुभव इस मेले का है।
शुभकामनाएं - कोरोना महामारी का अंत हो। संसार पटरी पर आवे । गंगा दशहरा का पर्व भक्ति के साथ-साथ उल्लास से मनाया जायेगा। मां की कृपा विश्व समुदाय पर बनी रहे। इन्हीं अपेक्षाओं के साथ एक बार पुनः आप सबको गंगा दशहरा के पावन अवसर पर शुभकामनाएं। मां आपका मनोरथ पूर्ण करें।
कोई टिप्पणी नहीं