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क्या नहीं उत्तराखण्ड़ में अकूत प्राकृतिक सौन्दर्य, सम्पदा और स्थान

प्रस्तुति: एस.एम. बिज्ल्वाण,  क्या नहीं उत्तराखण्ड़ में अकूत प्राकृतिक सौन्दर्य,सम्पदा,और स्थान,जो यहां के लोगो के लिये रोजगार,आय,के सरल साध...

प्रस्तुति: एस.एम. बिज्ल्वाण, 

क्या नहीं उत्तराखण्ड़ में अकूत प्राकृतिक सौन्दर्य,सम्पदा,और स्थान,जो यहां के लोगो के लिये रोजगार,आय,के सरल साधन बन सकते हैं,यूं तो देश स्वतंत्रता की 75 वीं बर्षगांठ 2022 में स्वर्ण जयन्ती बर्ष  के रूप में मनाने की बाते हो रही हैं,वहीं उत्तराखण्ड भी 21 बर्ष का होने रहा है। क्या नहीं पहाड की कहानी, पानी और जवानी सब है, लेकिन यदि कुछ नहीं है तो वह यहां के जन नेताओ की पहाड के प्रति प्रेम, लगाव, संसाधनों का कैसे रोजगार से जोडा जाय, इसके लिये धरातलीय जानकारी को अवसर के रूप प्रयोग करने की जिज्ञासा। हमने अपनी सेवाओ के दौरान देखा कि पहाड के विकास की योजनाओ का निर्धारण हमारे केंद्र  सरकार के व्यूरोक्रेट से लेकर जनपद स्तर के प्रशासनिक अधिकारियो व्दारा अपनी समझ व सोच के अनुसार किया जाता है।

 हम ये नहीं कहते कि विकास नहीं हुआ,सडके,बिजली,शिक्षा,की व्यवस्थायें हुई। लेकिन ये पर्याप्त नहीं। राज्य में कुछ वन,कृषि अनुसंधान केंद्र  है। वहां रिसर्च, वैज्ञानिक हजारो रूपये की मोटी तनख्वा लेकर अनुसंधान करते है।क्या ये खोज व रिसर्च का लाभ यहां के कृषको, बेरोजगार युवाओ के लिये रोजगार के रूप में धरातल पर नहीं उतार पायें। उत्तराखण्ड के हर वनस्पति,फूल,पत्ते, लकडी,जडी बूटी औषधि गुणो से युक्त हैं।मुझे वन विभाग के वनपति उद्यानो के बोर्डो पर  पेन्टिंग के रूप देखने को मिली।

यदि राज्य सरकारें चाहती तो इन जानकारियो को रोजगार से जोडने की नीति में शामिल करते।साथ ही शिक्षा में रोजगार से जोडने की सोच को कार्यरूप में परिवर्तित करती।लेकिन ऐसा न करके राज्य सरकारो ने लोगो को दो रूपये किग्रा गेंहू,3 रू0 चावल सस्ता राशन, फ्री बिजली,पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य,आवास सुविधा पाने की लालसा पैदा की है,जिसकारण पहाड की  खेती बंजर होती गई।निर्उद्देशीय शिक्षा ने छोटे छोटे काम के नाम से पलायन को प्रोत्साहन मिला। 

गांव के विकास के सरकारो मिली राशि का चकडैत,बिचौलियो,प्रधान कम ठेकेदारो ने खूर्बुर्द करवा कर इति श्री करवाकर केवल कागजी खाना पूर्ति करते रहे। मुझे 1970 का दशक आज भी याद आता है कि मेरे गांव  में केवल 26 परिवार थे।यमुना के किन्नारे तीन चार घराट होते थे,जिनमें सात आठ गांव के लोग आटा पिसवाने आते थे।गांव बडी मात्रा में गाय भैंस,बकरी होती थी। बढई,लोहार,कुम्महार,रिगाल की टोकरी कंडी,कृषि यंत्र हल,जुआ, बनाने वाले एक दूसरे पूरक होते थे। वस्तु विनिमय होता था।अब अंग्रेजी पढाई के नाम से गांव से कस्बो में कस्बो से शहरो,महानगरो की ओर पलायन की बाढ आ गई। राज्य बनने के इन 21 बर्षो में राज्य सरकारे गांव के अनुसार योजनाये बनाते और वास्तव में धरातल लाने का थोडा भी प्रयास करते तो आज यह भयावह स्थति पैदा न होती।

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