रानीचौरी: संस्कारी व्यक्ति की सभी प्रशंसा करते हैं। व्यक्ति के भीतर एक क्रमिक प्रक्रिया द्वारा ही संस्कारों का समावेश होता है । यदि बाल्य...
रानीचौरी: संस्कारी व्यक्ति की सभी प्रशंसा करते हैं। व्यक्ति के भीतर एक क्रमिक प्रक्रिया द्वारा ही संस्कारों का समावेश होता है । यदि बाल्यावस्था से ही व्यक्ति को संस्कारित किया जाए तो उसमें वे स्थायी रूप से वास करते हैं। असल में बचपन कच्ची मिट्टी की तरह होता है और हम उसे जैसा रूप देना चाहते हैं वैसा दे सकते हैं । अगर हम उसे श्रेष्ठ संस्कारों से परिष्कृत करें तो भविष्य श्रेष्ठता को प्राप्त होगा । जिस तरह कच्ची मिटटी से एक सुंदर घड़े अथवा सुराही का निर्माण होता है तत्पश्चात उस घड़े अथवा सुराही में रंग भरकर उसे आकर्षक बनाया जाता है । ठीक वैसा ही बच्चों के साथ भी किया जा सकता है।
बाल्यावस्था के संस्कार स्थायी होते हैं । अगर इस अवस्था में श्रेष्ठ संस्कारों का पियूषपान कर लिया जाए तो जीवन के सफल होने के मार्ग स्वतः खुल जाते हैं । बाल संस्कारों का पोषण हमारे व्यवहार से होता है । हम जैसा व्यवहार बच्चों के साथ करते हैं वे वैसा ही सीखते हैं । बच्चों में सच बोलने का संस्कार हमारे सच बोलने से ही आएगा । माता - पिता के आचरण का बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ता है । ऐसे में आवश्यक है कि हम बच्चों के समक्ष श्रेष्ठ व्यवहार का प्रदर्शन करें।
संस्कारों के बीजारोपण के लिए श्रेष्ठ साहित्य की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है । नैतिक शिक्षा बाल संस्कार की रीढ़ है । संस्कारपूरित साहित्य बच्चों के जीवन की दशा बदल देता है । बाल कहानियों का बच्चों के जीवन में बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है । अगर ये कहानियां बालमन में दया , करुणा , साहस , शौर्य , पराक्रम , सत्यवादिता , शुचिता , सरलता और ईमानदारी जैसे गुणों का अंकुरण करने में सफल होती हैं तो बच्चे का कायाकल्प तय है ।
स्मरण रहे कि समाज निर्माण और राष्ट्रनिर्माण व्यक्ति निर्माण से ही संभव है और श्रेष्ठ व्यक्ति निर्माण बाल संस्कारों से होता है । स्पष्ट है कि हमारे जीवन में बाल संस्कार की महती भूमिका है।
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