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हिन्दी साहित्य का गढ़वाल में उद्भव व विकास विषय पर शोध के तहत डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित हुए ब्रह्मदेव डोभाल

प्रस्तुति: हर्षमणि बहुगुणा अच्छेद्यो s यमदाह्यो s यमक्लेद्यो s शोष्य एव च। नित्य: सर्व गत: स्थाणुरचलो s यं सनातन:।।   देवभूमि उत्तराखं...

प्रस्तुति: हर्षमणि बहुगुणा

अच्छेद्योsयमदाह्योsयमक्लेद्योsशोष्य एव च।

नित्य: सर्व गत: स्थाणुरचलोsयं सनातन:।।

 देवभूमि उत्तराखंड की तपस्थली त्रिहरी का संगम तथा आज जिस माटी में नया टिहरी नगर बसा है जिसे कुलणा के नाम से अभिहित किया जाता था, में प्रात:स्मरणीय श्री सूर्य मणि डोभाल जी के यहां तीन जुलाई सन् १९४० (मूल जन्म पत्रिका के अनुसार) में डॉ. ब्रह्मदेव डोभाल जी का जन्म हुआ था। प्रतिभा सम्पन्न आपका बाल्यकाल अद्भुत रहा, कक्षा चार तक प्राइमरी स्तर की शिक्षा टिहरी से प्राप्त कर अग्रिम उच्च शिक्षा के लिए हरिद्वार गुरुकुल महाविद्यालय में शिक्षा अर्जित की।



वनारस से संस्कृत की परीक्षा हेतु सार्थक प्रयास कर हिन्दी, संस्कृत में स्नातकोत्तर परीक्षा के बाद शोध "हिन्दी साहित्य का गढ़वाल में उद्भव व विकास" का विषय रहा, इससे डाक्टरेट की उपाधि से विभूषित हुए। रोजगार हेतु हरिद्वार से शिक्षण प्रारम्भ किया। भगवान दास संस्कृत महाविद्यालय व गुरुकुल कांगड़ी महाविद्यालय फिर भार्गव इण्टर कॉलेज मंसूरी में दो वर्ष तक अध्यापन कार्य किया।

प्रबल इच्छा शक्ति व लग्न की एकाग्रता के फलस्वरूप गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के पौड़ी परिसर में हिन्दी विभाग में प्रोफेसर के रूप में प्रथम नियुक्ति हुई व तीन वर्ष वहां सेवा कर स्वामी राम तीर्थ परिसर टिहरी में स्थानांतरित हुए व वहीं से विभागाध्यक्ष के पद से सन् 2004 में सेवानिवृत्त हुए।"

  "जीवन की लीला बड़ी विचित्र है, सावली गांव में अपनी सास की एक मात्र दुहिता अपनी सहधर्मिणी बनाई व लक्ष्मी स्वरूपा सप्त घृतमातृकाओं की प्रति मूर्ति के तुल्य कन्याओं को प्राप्त कर एक सुपुत्र के पिता बनने का सौभाग्य मिला, उन सभी की सुशिक्षा व्यवस्था के बाद सुयोग्य दामाद व गृहलक्ष्मी रूपी बहु को प्राप्त कर अपने जीवन की सार्थकता को सिद्ध किया। यह आपके पुण्य अर्जन का प्रतिफल आपको उपलब्ध हुआ। शायद गीता के इस उपदेश का प्रभाव आप पर अक्षरशः खरा उतरता है।"

मच्चित्त:सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।

अथ चेत्त्वमहंकारान्न श्रोष्यसि विनंक्ष्यसि।।

"'  क्या नहीं था आपके पास, विद्या, बुद्धि, यश, मान, सम्मान, धन सब कुछ, नहीं था तो केवल आनन्दित अवशेष वर्षों के सुख का उपभोग। केवल अस्सी दशकों की कठिन साधना पूर्ण कर शेष जीवन जिसने मधुमय गुजरना था वही एक दिसम्बर सन् 2020 की रात को अपने चिर विश्राम गृह की ओर प्रस्थान किया। भरा पूरा परिवार दो सुपौत्र, सभी कन्याओं के पुत्र-पुत्रियां इन सबसे पूर्ण कुनवा और अनुज श्री जयदेव डोभाल जी व अपनी सहधर्मिणी को अपना उत्तर दायित्व सौंपकर द्रोण नगरी में अन्तिम स्वास लेकर अपने स्वजनों से घिरे हुए इस पवित्र माटी को अलविदा कहा।

कर्मठ व्यक्तित्व के धनी आपका प्रयाण स्वजनों को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण इष्ट मित्र व परिचित लोगों को कष्ट कर लग रहा है। सभी आपकी दिवंगत आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना करते हैं तथा आपकी रिक्तता से जो असह्य वेदना परिजनों को हुई उस वेदना को सहन करने की शक्ति ईश्वर उन्हें प्रदान करेंगे यह प्रार्थना भी करते  हैं।"

      यह सिद्धांत निश्चित ही है कि –

जातस्य हि ध्रुवो मृत्यर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।

तस्मादपरिहार्येsर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।

 इस महान विभूति को अपनी भावभीनी श्रृद्धांजलि समर्पित कर कोटि-कोटि नमन करता हूं तथा दिवंगत आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना करता हूं।

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