अल्मोड़ा : कागज पर लिखा हुआ पत्र दीर्धकाल तक अपनी यादें संजोए रखता है। जबकि सोशल मीडिया के संदेश अधिक दिन तक हमारे पास सुरक्षित नहीं रहते है...
अल्मोड़ा: कागज पर लिखा हुआ पत्र दीर्धकाल तक अपनी यादें संजोए रखता है। जबकि सोशल मीडिया के संदेश अधिक दिन तक हमारे पास सुरक्षित नहीं रहते हैं। ये बात बालसाहित्यकार तथा राजकीय उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय सिसैया, ऊधमसिंहनगर के प्रधानाचार्य रावेंद्रकुमार रवि ने कहीं। रावेंद कुमार ‘रवि’ ने बालप्रहरी तथा बाल साहित्य संस्थान अल्मोड़ा द्वारा आयोजित ऑनलाइन पत्र लेखन कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के आज के दौर में पत्र लेखन विधा विलुप्ति के कगार पर है। उन्होंने कहा कि पत्र एक ऐसी विधा है जिसमें पारिवारिक तथा सामाजिक कई विषयों पर एक साथ बातचीत की जा सकती है। उन्होंने बच्चों से कहा कि हमें प्रतिदिन अपनी डायरी में उस दिन की गतिविधियों को लिखना चाहिए।
कार्यक्रम के प्रारंभ में बालप्रहरी के संपादक तथा बालसाहित्य संस्थान अल्मोड़ा के सचिव उदय किरौला ने बताया कि कोरोना काल में आज 40वें ऑनलाइन कार्यक्रम में बच्चों ने ‘लड़कियां घर की शान हैं’ विषय पर अपने माता-पिता, चाचा-चाची, ताई, मामा व दादा-दादी आदि पारिवारिक जनों को पत्र लिखे हैं। कई बच्चों ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा मुख्यमंत्री आदि को पत्र लिखते हुए लड़कियों को जन्म लेने का अधिकार दिए जाने की मांग की है। इस कार्यक्रम की संचालक राजकीय इंटर कालेज दड़मियां,अल्मोड़ा की कक्षा 9 की छात्रा रष्मि भोज ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि उत्तराखंड में लड़कियों का नाम स्कूल में जरूर दर्ज है परंतु ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों के पास घर के इतने काम है कि उन्हें स्कूल के होमवर्क तथा पाठ को दोहराने का समय तक नहीं मिल पाता है। अध्यक्ष मंडल में शामिल शिवांशी शर्मा (रायपुर,छत्तीसगढ़), आशिमा शर्मा (ज्यौड़िया, जम्मू), पूर्वांशी ध्यानी (पौड़ी), कंचन साहू (महासमुंद, छत्तीसगढ़) सहित 34 बच्चों ने अपने लिखे पत्रों का वाचन किया।
इस अवसर पर सर्व श्री आकाश सारस्वत, उप निदेशक शिक्षा विभाग उत्तराखंड, बालप्रहरी के संरक्षक
श्याम पलट पांडेय (अहमदाबाद), उद्धव भयवाल (औरंगाबाद), हरदेव धीमान (शिमला), शशि ओझा(भीलवाड़ा),
राजा
चौरसिया(कटनी), श्यामनारायण श्रीवास्तव (रायगढ़), करूणा पांडे, रूपा राय (लखनऊ), बृजमोहन जोशी (देवीधूरा), नरेंद्र गोस्वामी
(कपकोट), महेश
जोशी (गरूड़),
विमला जोशी (हल्द्वानी), महेंद्र ध्यानी (धूमाकोट), संगीता ध्यानी (पौड़ी), जगदीश पंत ‘कुमुद’ (खटीमा), दलीप बोरा (अल्मोड़ा), देवसिंह राना (दिल्ली), कृपालसिंह शीला (बासोट) सहित कई साहित्यकार, शिक्षक तथा अभिभावक उपस्थित थे।
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