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कविता: 'मुफ्तखोरी' से यह देश एक दिन, पंगु बनेगा...!

News Word @ कवि: सोमवारी लाल सकलानी , निशांत। मुफ्तखोरी के जाल में जब-जन जकड़ेगा , कभी अपनी जीने की   राह-नहीं पकड़ेगा। मुफ्तखोरी से...

कविता: 'मुफ्तखोरी' से यह देश एक दिन, पंगु बनेगा...!


News Word@कवि: सोमवारी लाल सकलानी,निशांत।

मुफ्तखोरी के जाल में जब-जन जकड़ेगा,

कभी अपनी जीने की  राह-नहीं पकड़ेगा।

मुफ्तखोरी से एक दिन देश यह  पंगु बनेगा,

कर्ममहत्व, स्वाभिमान से जन जी न सकेगा।

उन्नति के सब द्वार-दरवाजे बंद हो जायेंगें,

नौजवान बच्चे बूढ़े सब केवल मुंह ताकेंगे।

नेताओं को तो मुफ्त खाने की ही आदत है,

मुफ्त जमीन धन सुविधाएं दौलत आनी है।

जब मुफ्त में भोजन वस्त्र, मकान  मिलेगा,

बिजली पानी राशन तक भी मुफ्त मिलेगा,

क्यों मेहनत से मजदूर किसान कर्म करेगा,

मुफ्तबाजी के चक्कर मे गरीब बना रहेगा।

नेताओं को तो मुफ्त सुख - सुविधा चाहिए,

कोठी बंगला भूमि भवन सब मुफ्त चाहिए।

दौलत शोहरत पद प्रतिष्ठा तक मुफ्त चाहिए,

शासन सुख शहरी सुविधा सत्ता सदा चाहिए।

ऐ कर्मवीरों! बात कवि की भी अभी मान लो।

मेहनतकश भाइयों, मत इनके झांसे में आओ।

स्वाभिमान से सिर ऊंचा कर कर्म पथ पहचानो,

और बच्चों को अच्छी शिक्षा संस्कार दिलाओ।


*कवि कुटीर, सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल।


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